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रहस्यमाई चश्मा भाग - 12




सिंद्धान्त एक टांगे से दूसरे टांगे तीसरे टांगे बदलता हुआ लगभग घरों में टिमटिमाते दिए के समय सुयश द्वारा बताये गए पते पर पहुंचा ।
वह गांव के गणमान्य लांगो से मिलने की कोशिश करने लगा गांव वाले किसी भी अनजान व्यक्ति को बहुत तवज्जो नही दे रहे थे वह भी तब जब उन्हें यह मालूम हुआ कि अनजान व्यक्ति शुभा कि तलाश में आया है सबके मन मे एक ही प्रश्न था यह अनजान व्यक्ति शुभा कि तलाश क्यो कर रहा है ?


तभी सिंद्धान्त कि मुलाकात सुरहु पहलवान से हुई उसने सिंद्धान्त को बताया कि वह स्वंय सुयश को रेलवे स्टेशन छोड़ने गया था उस के बाद वह लौटा नही सिंद्धान्त ने सुरहु पहलवान को सुयश के विषय मे पूरी जानकारी देते हुए बताया कि वह शुभा को लेने के लिए सुयश के कहने पर ही आया है सुरहु पहलवान ने गांव के एक मात्र उच्च शिक्षित व्यक्ति श्यामा चरण झा से मिलवाया और उसने स्वंय सिंद्धान्त द्वारा बताए विवरण को बताकर कहा की सिंद्धान्त बाबू दरभंगा से शुभा माईया को लेने आये है जो सुयश कि इच्छा है रात बहुत हो गयी है अब ये कहा जाएंगे अतः मैं इन्हें आपके पास लेकर आया हूँ जिससे इनको कोई परेशानी ना हो वैसे भी जब भी गांव में कोई भी बात होती है सभी आपके पास ही आते है श्यामा चरण ने सिंद्धान्त से कुछ सवाल पूछे और उत्तर से संतुष्ट होने के बाद सिंद्धान्त के ठहरने एव भोजन कि व्यवस्था कर दिया और सुबह बात करने के लिए कहकर सोने चले गए।



सिंद्धान्त को जैसे अनजाने जगह श्यामाचरण झा के रूप में एक ऐसा सहारा मिल गया जिसके कारण कोई परेशानी नही होनी थी सिंद्धान्त कि देख रेख के लिए श्यामाचरण झा जी ने अपने खास आदमी टेसू कोहार को लगा रखा था टेसू भी पूरी निष्ठा के साथ सिंद्धान्त कि सेवा टहल कर रहा था वह सिंद्धान्त के लिए खाना बना रहा था बीच बीच मे आकर कुछ बात भी करता कभी वह अपने मालिक कि तारीफ करता तो कभी शुभा माई कि


 एकाएक वह सिंद्धान्त के पास आया बोला मलिक भोजन बन गया है चले, सिंद्धान्त टेसू के साथ भोजन के लिए चल पड़ा भूख उंसे बहुत तेज लगी थी टेसू ने मोटी मोटी रोटी और कोदो का भात बनाया था चने की दाल बथुआ का साग दही सिंद्धान्त को टेसू के हाथों से बनाया भोजन जैसे अमृत हो बड़े चाव से सिंद्धान्त भोजन ग्रहण कर रहा था बीच बीच मे टेसू पूछ लेता साहब भोजन ठीक बनल ह सिंद्धान्त टेसू के भोजन कि तारीफ करता टेसू फुले नही समाता सिंद्धान्त भोजन करने के बाद सोने के लिए चला गया टेसू भी सिंद्धान्त के ही कमरे में जमीन पर सो गया सिंद्धान्त सुबह सूरज कि पहली किरण के साथ उठा और दैनिक क्रिया स्नान पूजन से निवृत्त होकर श्यामाचरण झा जी का इन्तज़ार करने लगा श्यामाचरण जी भी अपने दैनिक कार्यो से निबृत्त होकर सिंद्धान्त के पास आये और बोले बताये सिंद्धान्त बाबू आपको कोई तकलीफ़ तो नही हुई मेरे गांव में सिंद्धान्त तो स्वंय श्यामाचरण झा जी के अतिथि सत्कार से आत्मविभोर था बोला झा साहब आज इस बात का अनुभव हो ही गया कि मिथिलांचल कि संस्कृति सांस्कार भारत के लिए गर्व अभिमान क्यो है ?

वास्तव मे यहां कि माटी एव माटी कि सुगंध पूरे भारत के साथ साथ मानवता के लिये विरासत का बैभव है श्यामाचरण झा जी सिंद्धान्त कि बातों को बड़े ध्यान से सुन रहे थे सिंद्धान्त कि बात समाप्त होने के उपरांत श्यामाचरण जी बोले सिंद्धान्त बाबू वैसे तो सुरहु ने आपके आने के उद्देश्य के विषय मे कुछ बताया था लेकिन मैं आपके द्वारा ही आपके आने के उद्देश्य को जानना चाहूंगा सिंद्धान्त ने बताना शुरू किया वह शुभा कि तलाश में आया है क्योंकि सुयश का दाहिना हाथ दुर्घटना में जख्मी होने के कारण काटना पड़ा है उसी की इच्छा पर उसकी माईया शुभा को लेने आया है श्यामाचरण झा जी ने प्रश्न किया सिंद्धान्त बाबू शुभा और सुयश का तो कोई है ही नही तो इतनी बड़ी दुर्घटना से घटित होने पर इलाज कौन करा रहा है ?

तब सिंद्धान्त ने मंगलम चौधरी मिथिलांचल कि शान और सुयश कि मुलाकात का पूरा किस्सा बताया श्यामचरण जी को सुयश के विषय मे जानकर बहुत कष्ट हुआ भारी मन से बोले एक तो शुभा ने कभी विवाह नही किया फिर भी सुयश उसका बेटा यही पहेली गांव के लिए अनसुलझी थी उसका तो कोई सगा कोई रिश्ता नाता भी नही था माँ बेटे ही झोपड़ी में रहते थे गांव वाले बिन व्यही माँ को एक तरह से गांव निकाला ही कर दिया था वह तो भला हो गांव के मंदिर के पुजारी संतराम गिरी जी का कि उन्होंने मंदिर के बगल में शुभा को पलान बनाने के लिए जगह दे दिया और जो कुछ मंदिर पर चढ़वा आता उसी से माँ बेटे का पेट भरता बेटा जब कुछ करने लायक हुआ तब भी ईश्वर ने जाने क्या न्याय किया ?

बेटे का दाहिना हाथ ही कट गया और माँ उंसे तलाश करते हुए कहा कहा भटक रही होगी श्यामाचरण झा जी ने कहा सिंद्धान्त बाबू मैं आपको दो चार आदमी दे देता हूँ आप दो चार दिन रुक कर शुभा कि तलाश आस पास के गांवों में करे शायद कोई सुराग शुभा तक पहुचने का मिल जाए इतनी दूर से शुभा कि तलाश में आये है तो सारे प्रायास कर लीजिए जिससे कि आपको एव मंगलम चौधरी साहब को भरोसा हो सके शुभा का मिलना या ना मिलना ईश्वर कि इच्छा एव उसकी तकदीर पर निर्भर है।

सिंद्धान्त ने कहा झा साहब सही कह रहे है आप मेरे साथ अपने आदमियों को भेजे जो विश्वसनीय एव इलाके के जानकार हो श्यामाचरण झा जी ने अपनी बघ्घी के साथ चुरामन राम आशीष और टेसू को खान पान कि व्यवस्था के साथ शुभा कि तलाश के लिए भेजने की तैयारी कर दी,,,,,,

 सिंद्धान्त दुसरे दिन सुबह चुरामन रामाशीष एव टेसू को लेकर शुभा कि तलाश में निकल पड़ा आस पास के गांवों में शुभा का हुलिया बताते हुए उसके विषय मे जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करते लेकिन कोई सुराग नही मिल रहा था जहां रात हो जाती वहीं रुक जाते और टेसू के हाथों से बने व्यंजन का स्वाद लेते फिर सुबह शुभा कि तलाश में निकल पड़ते इस तरह से लगभग पंद्रह दिन बीत गए लेकिन शुभा के विषय मे कोई सुराग नही मिला हर सुबह सिंद्धान्त शुभा कि तलाश में निकलता और शाम को निराश होकर जहाँ शाम होती रुक जाता और अगले सुबह शुभा के मिलने की उम्मीद में फिर निकल पड़ता इधर मंगलम चौधरी परेशान थे कि आखिर सिंद्धान्त को गए इतने दिन हो गए अभी तक लौटा नही क्या बात है ?आशंकाओं एव संसय के बादल और घने होते जा रहे थे।


शुभा को बच्चे और गांवों के लोग पागल डायन समझ कर पत्थर मारते दुदकारते अब स्थिति यह हो चुकी थी कि शुभा कूड़ा कचरे से सड़ा गला जो भी मिलता भूख लगने पर पेट भरने के लिए खाती अब वह वास्तव मे पागल कि तरह ही हो चुकी थी इस स्थिति में भी वह सिर्फ सुयश सुयश ही पुकारती शुभा इसी तरह भटकते भटकते अपने गांव से बहुत पता नही कैसे उड़ीसा के काला डोंगी के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रो में पहुंच गई काला हांडी के भीषण जंगलों में पहुंच गई जहाँ उंसे आदिवासी नवयुको ने देखा और उसे पकड़ कर अपने साथ लेकर अपने समाज के मुखिया चंदर पास ले गए वहाँ भी आदिवासी नौजवानों एव बच्चों के लिए शुभा कौतूहल का विषय बनी हुई थी वह सिर्फ एक ही शब्द बोलती सुयश इसके अतिरिक्त वह कुछ भी बोल नही पा रही थी आदिवासी भाषा समझने की बात तो तब होती जब शुभा को कुछ भी सुयश के अतिरिक्त याद हो आदिवासी मुखिया चंदर कि समझ मे बात आ गयी की हो ना हो समाज के नौजवान जिसे ले आये है वह कोई दुखियारी है!


 चंदर ने शुभा को नहलाने धुलाने के लिए आदिवासी महिलाओं को हिदायत दिया आदिवासी महिलाओं ने शुभा को बड़ी मुश्किल से स्नान कराया उसके बाद उंसे कुछ फल एव आदिवासी आहार दिया जिसे देखते ही शुभा ऐसी टूट पड़ी जैसे कोई वर्षो से भूखा खूंखार खूंखार प्राणि हो पेट भरने के बाद शुभा ऐसी घनघोर निद्रा में चली गयी जिसका आदिवासी मुखिया चंदर को अंदाजा तक नही था चन्दर ने पूरे समाज को हिदायत दे रखी कोई भी उंसे नीद से जगाने कि कोशिश नही करेगा जब तक वह खुद नीद से नही जाग जाती बीच बीच मे चन्दर खुद शुभा कि निगरानी करते उसकी नब्ज टटोलकर देखते पूरे तीन दिनों कि निद्रा के बाद शुभा उठी जैसे वह किसी भयंकर अचेतन से जागी हो शुभा के जागने के बाद चन्दर ने पुनः अपने अनुसार उससे उसके विषय मे जानने की कोशिश की मगर सारे प्रयास व्यर्थ साबित हुए चन्दर को लगा कि शायद सर एव शरीर पर पत्थरो कि मार से शुभा की हालत ऐसी हो गयी है सम्भव है घावों कि चिकित्सा करने एव ठीक होने पर कुछ बता सकने में समर्थ हो सके ।



जारी है




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4 Comments

kashish

09-Sep-2023 07:57 AM

Very nice

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Varsha_Upadhyay

15-Jul-2023 07:47 PM

बहुत खूब

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Alka jain

15-Jul-2023 02:48 PM

Nice one

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